
पडपडिहारसिमज्जा, आहारं देह उच्चणीचंगं ।
भंडारे मूलाणं, णोकम्मं दवियकम्मं तु ॥69॥
अन्वयार्थ : द्रव्यनिक्षेपकर्म का जो एक भेद नोकर्मतद्व्यतिरिक्त है उसी को यहाँ नोकर्म शब्द से समझना । जिस प्रकृति के फल देने में जो निमित्तकारण हो वही उस प्रकृति का नोकर्म जानना ।
ज्ञानावरणादि 8 मूलप्रकृतियों के नोकर्म द्रव्यकर्म क्रम से वस्तु के चारों तरफ लगा हुआ कनात का कपड़ा, द्वारपाल, शहद लपेटी तलवार की धार, शराब, अन्नादि आहार, उच्च-नीच शरीर, शरीर और भंडारी -- ये आठ जानना ॥६९॥