ओहिमणपज्‍जवाणं, पडिघादणिमित्तसंकिलेसयरं ।
जं बज्‍झट्ठं तं खलु, णोकम्मं केवले णत्थि ॥71॥
अन्वयार्थ : अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान इन दोनों के घात करने का निमित्त कारण जो संक्‍लेशरूप (खेदरूप) परिणाम उसको करने वाली जो बाह्य वस्‍तु वह अवधिज्ञानावरण तथा मनःपर्ययज्ञानावरण का नोकर्म है । और केवलज्ञानावरण का नोकर्म कोई वस्‍तु नहीं है क्योंकि केवलज्ञान क्षायिक भाव है । उस केवलज्ञान का घात करने वाले संक्‍लेश परिणामों का अभाव है ॥७१॥