
आयदणाणायदणं, सम्मे मिच्छे य होदि णोकम्मं ।
उभयं सम्मामिच्छे, णोकम्मं होदि णियमेण ॥74॥
अन्वयार्थ : जिन, जिनमंदिर, जिनागम, जिनागम के धारण करने वाले, तप और तप के धारक — ये छह आयतन सम्यक्त्व प्रकृति के नोकर्म हैं ।
कुदेव, कुदेव का मंदिर, कुशास्त्र, कुशास्त्र के धारक, खोटी तपस्या, खोटी तपस्या के करने वाले — ये 6 अनायतन मिथ्यात्व प्रकृति के नोकर्म हैं ।
तथा आयतन और अनायतन दोनों मिले हुए सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय के नोकर्म हैं । ऐसा निश्चय कर समझना ॥७४॥