अणणोकम्‍मं मिच्छत्तायदणादी हु होदि सेसाणं ।
सगसगजोग्गं सत्थं, सहायपहुदी हवे णियमा ॥75॥
अन्वयार्थ : अनन्तानुबंधी कषाय के नोकर्म मिथ्या आयतन अर्थात् कुदेव आदि छह अनायतन हैं । और बाकी बची हुई बारह कषायों के नोकर्म देशचारित्र, सकलचारित्र तथा यथाख्‍यातचारित्र के घात में सहायता करने वाले काव्य, नाटक, कोक शास्त्र और पापी जार (कुशीली) पुरुषों की संगति करना इत्यादिक हैं, ऐसा नियम से जानना ॥७५॥