
णिरयायुस्स अणिट्ठाहारो सेसाणमिट्ठमण्णादी ।
गदिणोकम्मं दव्वं, चउग्गदीणं हवे खेत्तं ॥78॥
अन्वयार्थ : अनिष्ट आहार अर्थात् नरक की विषरूप मिट्टी आदि नरकायु का नोकर्मद्रव्य है ।
बाकी तिर्यंच आदि तीन आयुकर्मों का नोकर्म इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसा अन्न-पानी आदि है ।
गति नामकर्म का नोकर्म द्रव्य चार गतियों का क्षेत्र है ॥७८॥