णिरयादीण गदीणं, णिरयादी खेत्तयं हवे णियमा ।
जाईए णोकम्मं, दव्विंदियपोग्गलं होदि ॥79॥
अन्वयार्थ :
नरकादि चार गतियों का नोकर्मद्रव्य नियम से नरकादि गतियों का अपना-अपना क्षेत्र है ।
जातिकर्म का नोकर्म द्रव्येन्द्रियरूप पुद्गल की रचना है ॥७९॥