एइंदियमादीणं, सगसगदव्‍विंदियाणि णोकम्‍मं ।
देहस्स य णोकम्मं, देहुदयजदेहखंधाणि ॥80॥
अन्वयार्थ : एकेन्द्रिय आदिक पाँच जातियों के नोकर्म अपनी-अपनी द्रव्येन्द्रिय है ।
शरीर नामकर्म का नोकर्मद्रव्य शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न हुए अपने शरीर के स्कंधरूप पुद्‌गल जानना ॥८०॥