थिरजुम्मस्स थिराथिर-रसरुहिरादीणि सुहजुगस्स सुहं ।
असुहं देहावयवं, सरपरिणदपोग्गलाणि सरे ॥83॥
अन्वयार्थ : स्थिरकर्म का नोकर्म अपने-अपने ठिकाने पर स्थिर रहने वाले रस, रक्त आदि हैं और अस्थिर प्रकृति के नोकर्म अपने-अपने ठिकाने से चलायमान हुए रस, रक्त आदिक हैं । शुभ प्रकृति के नोकर्मद्रव्य शरीर के शुभ अवयव हैं तथा अशुभ प्रकृति के नोकर्मद्रव्य शरीर के अशुभ (जो देखने में सुन्दर न हों ऐसे) अवयव हैं ।
स्‍वर नामकर्म का नोकर्म सुस्‍वर-दुःस्‍वररूप परिणमे पुद्‌गल परमाणु हैं ॥८३॥