
उच्चस्सुच्चं देहं, णीचं णीचस्स होदि णोकम्मं ।
दाणादिचउक्काणं, विग्घगणगपुरिसपहुदी हु ॥84॥
अन्वयार्थ : उच्चगोत्र का नोकर्मद्रव्य लोकपूजित कुल में उत्पन्न हुआ शरीर है और नीच गोत्र का नोकर्म लोकनिंदित कुल में प्राप्त हुआ शरीर है । दानादिक चार का अर्थात् दान, लाभ, भोग और उपभोगान्तराय कर्म का नोकर्मद्रव्य दानादिक में विघ्न करने वाले पर्वत, नदी, पुरुष, स्त्री आदि जानने ॥८४॥