विरियस्स य णोकम्मं, रुक्खाहारादिबलहरं दव्वं ।
इदि उत्तरपयडीणं, णोकम्मं दव्वकम्मं तु ॥85॥
अन्वयार्थ :
वीर्यांतराय कर्म के नोकर्म रूखा आहार आदि बल के नाश करने वाले पदार्थ हैं । इस प्रकार उत्तरप्रकृतियों के नोकर्म द्रव्यकर्म का स्वरूप कहा ॥८५॥