+ मंगलाचरण -
णमिऊण णेमिचंदं असहायपरक्कमं महावीरं ।
बंधुदयसत्तजुत्तं ओघादेसे थवं वोच्छं ॥87॥
अन्वयार्थ : मैं (नेमिचन्द्र आचार्य) कर्मरूप वैरी के जीतने में असहाय (किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा जिसमें नहीं है ऐसे) पराक्रम वाले तथा महावीर (वंदने वालों को मनवांछित फल के देने वाले) ऐसे नेमिनाथ तीर्थंकररूपी चंद्रमा को नमस्कार करके, गुणस्‍थान और मार्गणास्थानों में कर्मों के बंध-उदय-सत्त्व को बताने वाले *स्‍तवरूप ग्रन्थ को अब कहूँगा ॥८७॥*स्तव = सकल अंगों संबंधी अर्थ जिस ग्रंथ में पाया जाता है