सयलंगेक्‍कंगेक्‍कंगहियार सवित्थरं ससंखेवं ।
वण्णणसत्थं थयथुइ, धम्मकहा होइ णियमेण ॥88॥
अन्वयार्थ : जिसमें सर्वांगसंबंधी अर्थ विस्‍तारसहित अथवा संक्षेपता से कहा जाये ऐसे शास्‍त्र को स्‍तव कहते हैं । जिसमें एक अंग (अंश) का अर्थ विस्‍तार से अथवा संक्षेप से हो उस शास्‍त्र को स्‍तुति कहते हैं । अंग के एक अधिकार का अर्थ जिसमें विस्‍तार से वा संक्षेप से कहा जाये उसे धर्मकथा कहते हैं ॥८८॥