
सादिअणादी धुवअद्धुवो य बंधो दु जेट्ठमादीसु ।
णाणेगं जीवं पडि, ओघादेसे जहाजोग्गं ॥90॥
अन्वयार्थ : उत्कृष्ट आदिक भेदों के भी सादि , अनादिबंध , ध्रुवबंध , और अध्रुवबंध , इस प्रकार चार-चार भेद हैं । इन बंधों को नाना जीवों की तथा एक जीव की अपेक्षा से गुणस्थान और मार्गणास्थानों में यथासंभव घटित कर लेना चाहिये ॥९०॥