सोलस पणवीस णभं, दस चउ छक्‍केक्‍क बंधवोच्छिण्णा ।
दुग तीस चदुरपुव्‍वे, पण सोलस जोगिणो एक्‍को ॥94॥
अन्वयार्थ : मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के अन्त समय में सोलह प्रकृतियाँ बंध-व्युच्छिन्न होती हैं । अर्थात् पहले गुणस्थान तक ही उनका बंध होता है, उससे आगे के गुणस्थानों में उनका बंध नहीं होता ।
इसी प्रकार दूसरे गुणस्थान में 25 प्रकृतियों की, तीसरे में शून्य, चौथे में दस की, पाँचवें में चार की, छठे में छह की, सातवें में एक प्रकृति की व्युच्छित्ति होती है ।
आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान के सात भागों में से पहले भाग में दो की, दूसरे भाग से पाँचवें भाग तक शून्‍य, छठे भाग में तीस की, सातवें भाग में चार प्रकृतियों की बन्‍ध-व्‍युच्छित्ति होती है ।
नवमें में पाँच की, दसवें में सोलह की, ग्यारहवें बारहवें गुणस्‍थान में शून्य, तेरहवें सयोगकेवली गुणस्थान में एक प्रकृति की बन्‍ध-व्‍युच्छित्ति होती है ।
चौदहवें गुणस्‍थान में बंध भी नहीं और व्युच्छित्ति भी नहीं होती ॥९४॥