
बिदियगुणे अणथीणति-दुभगतिसंठाणसंहदिचउक्कं ।
दुग्गमणित्थीणीचं, तिरियदुगुज्जोवतिरियाऊ ॥96॥
अन्वयार्थ : दूसरे सासादन गुणस्थान के अंतसमय में अनंतानुबंधी क्रोधादि चार, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला ये तीन, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय ये तीन, न्यग्रोधादि चार संस्थान, वज्रनाराचादि चार संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तिर्यग्गति, तिर्यंग्गत्यानुपूर्वी, उद्योत, और तिर्यंचायु, इन 25 प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है ॥९६॥