अयदे विदियकसाया, वज्‍जं ओरालमणुदुमणुवाऊ ।
देसे तदियकसाया, णियमेणिह बंधवोच्छिण्‍णा ॥97॥
अन्वयार्थ : चौथे असंयत गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादि चार कषाय, वज्रऋषभनाराच संहनन, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, मनुष्यगति, मनुष्यगत्‍यानुपूर्वी और मनुष्यायु, ये 10 प्रकृतियाँ बंध से व्‍युच्छिन्न होती हैं । पाँचवें देशविरत गुणस्थान में तीसरी प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि 4 कषाएँ नियम से बंध से व्‍युच्छिन्न होती हैं ॥९७॥