छट्ठे अथिरं असुहं, असादमजसं च अरदिसोगं च ।
अपमत्ते देवाऊ, णिट्ठवणं चेव अत्थित्ति ॥98॥
अन्वयार्थ : छठे गुणस्थान के अंतिम समय में अस्थिर, अशुभ, असाता वेदनीय, अयशस्कीर्ति, अरति और शोक -- इन छह प्रकृतियों की बन्‍ध-व्‍युच्छित्ति होती है । सातवें अप्रमत्त गुणस्थान में एक देवायु प्रकृति की ही व्‍युच्छित्ति होती है ॥९८॥