पुरिसं चदुसंजलणं, कमेण अणियट्टिपंचभागेसु ।
पढमं विग्घं दंसण-चउ जसउच्‍चं च सुहुमंते ॥101॥
अन्वयार्थ : नवमें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के पाँच भागों में से पहले भाग में पुरुषवेद की व्‍युच्छित्ति, बाकी के चार भागों में क्रम से संज्वलन क्रोधादि चार कषायों की व्युच्छित्ति जानना ।
दसवें सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में ज्ञानावरण पाँच, अंतराय के पाँच भेद, चक्षुर्दर्शनावरणादि चार, यशस्कीर्ति और उच्‍च गोत्र -- इस प्रकार 16 प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है ॥१०१॥