
उवंसतखीणमोहे, जोगिम्हि य समयियट्ठिदी सादं ।
णायव्वो पयडीणं, बंधस्संतो अणंतो य ॥102॥
अन्वयार्थ : उपशांतमोह गुणस्थान में, क्षीणमोह गुणस्थान में और सयोगकेवली गुणस्थान में एक समय की स्थिति वाला एक साता वेदनीय प्रकृति का ही बंध होता है । इस कारण तेरहवें गुणस्थान के अंतसमय में साता वेदनीय प्रकृति की ही व्युच्छित्ति होती है ।
चौदहवें में बंध के कारणभूत योग का अभाव होने से बंध भी नहीं तथा व्युच्छित्ति भी नहीं होती । इस प्रकार प्रकृतियों के बंध का अन्त अर्थात् व्युच्छित्ति जानना चाहिए ।