
सत्तरसेक्कग्गसयं, चउसत्तत्तरि सगट्ठि तेवट्ठी ।
बंधा णवट्ठवण्णा, दुवीस सत्तारसेक्कोघे ॥103॥
अन्वयार्थ : मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से 117, 101, 74, 77, 67, 63, 59, 58, 22, 17, 1, 1, 1 -- इस प्रकार प्रकृतियों का बंध तेरहवें गुणस्थान तक होता है । चौदहवें गुणस्थान में बंध नहीं होता ॥१०३॥