मिस्साविरदे उच्‍चं, मणुवदुगं सत्तमे हवे बंधो ।
मिच्छा सासणसम्मा, मणुवदुगुच्‍चं ण बंधंति ॥107॥
अन्वयार्थ : सातवें नरक में मिश्रगुणस्‍थान और अविरतनाम के चौथे गुणस्‍थान में ही उच्‍चगोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी -- इन तीन प्रकृतियों का बंध है । मिथ्यात्‍व गुणस्‍थान वाले तथा सासादन सम्यक्‍त्‍वी जीव वहाँ पर उच्‍च गोत्र और मनुष्य-द्विक -- इन तीनों प्रकृतियों को नहीं बाँधते ॥१०७॥