
सामण्णतिरियपंचिंदिंयपुण्णगजोणिणीसु एमेव ।
सुरणिरयाउ अपुण्णे, वेगुव्वियछक्कमवि णत्थि ॥109॥
अन्वयार्थ : सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पर्याप्त तिर्यंच, स्त्रीवेदरूप तिर्यंच में ऊपर लिखित रीति से ही व्युच्छित्ति आदिक समझना ।
लब्धि-अपर्याप्तक तिर्यंच में देवायु, नरकायु और वैक्रियिक- षट्क -- इन आठ प्रकृतियों का बंध नहीं होता है ॥१०९॥