कप्पित्थीसु ण तित्थं, सदरसहस्सारगोत्ति तिरियदुगं ।
तिरियाऊ उज्‍जोवो, अत्थि तदो णत्थि सदरचऊ ॥112॥
अन्वयार्थ : कल्पवासिनी स्‍त्रि‍यों में तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं होता । *शतारचतुष्क (तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचायु, तथा उद्योत) का बंध ग्यारहवें बारहवें-शतार सहस्रार नाम के स्‍वर्ग तक ही होता है । इसके ऊपर आनतादि स्‍वर्गों में रहने वालों के इन चार प्रकृतियों का बंध नहीं होता ॥११२॥ *इन चार प्रकृतियों का दूसरा नाम ‘शतारचतुष्क भी है; क्योंकि शतार युगल तक ही इनका बंध होता है