पण्णारसमुणतीसं, मिच्छदुगे अविरदे छिदी चउरो ।
उवरिमपणसट्ठीवि य, एक्‍कं सादं सजोगिम्हि ॥117॥
अन्वयार्थ : औदारिकमिश्रकाययोग में मिथ्यात्व और सासादन -- इन दो गुणस्‍थानों में 15 तथा 29 प्रकृतियों की बंध-व्युच्छित्ति क्रम से जानना ।
चौथे अविरत गुणस्‍थान में ऊपर की चार तथा 65 मिलाकर सब 69 प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है ।
तेरहवें सयोगीकेवली के एक साता वेदनीय की ही व्युच्छित्ति जानना ॥११७॥