कम्मे उरालमिस्सं, वा णाउदुगंपि णव छिदी अयदे ।
वेदादाहारोत्ति य, सगुणट्ठाणाणमोघं तु ॥119॥
अन्वयार्थ : कार्मणकाययोगी की रचना औदारिकमिश्र की तरह जानना । परंतु विग्रहगति में आयु का बंध न होने से मनुष्यायु तथा तिर्यंचायु इन दोनों का भी बंध नहीं होता, और चौथे असंयत गुणस्‍थान में नौ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है, इतनी विशेषता है ।
वेद मार्गणा से लेकर आहार मार्गणा तक जैसा साधारण कथन गुणस्‍थानों में है वैसा ही जानना ॥११९॥