
सादि अणादी धुवअद्धुवो य बंधो दु कम्मछक्कस्स ।
तदियो सादि य सेसो, अणादि धुवसेसगो आऊ ॥122॥
अन्वयार्थ : छह कर्मों का प्रकृतिबंध सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुवरूप चारों प्रकार का होता है । परंतु तीसरे वेदनीय कर्म का बंध तीन प्रकार का होता है, सादि बंध नहीं होता और आयुकर्म का अनादि तथा ध्रुव बंध के सिवाय दो प्रकार का अर्थात् सादि और अध्रुव ही बंध होता है ॥१२२॥