+ मूल-कर्म स्थितिबंध -
तीसं कोडाकोडी तिघादितदियेसु वीस णामदुगे ।
सत्तरि मोहे सुद्धं उवही आउस्स तेतीसं ॥127॥
अन्वयार्थ : तीन घातिया कर्मों (अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय) का और तीसरे वेदनीय कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबंध तीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है । नाम और गोत्र का उत्कृष्ट स्थितिबंध बीस कोड़ाकोड़ी सागर है । मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबंध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर है और आयु कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबंध शुद्ध तैंतीस सागर है ॥127॥