सव्वट्ठिदीणमुक्कस्सओ दु उक्कस्ससंकिलेसेण ।
विवरीदेण जहण्णो आउगतियवज्जियाणं तु ॥134॥
अन्वयार्थ : सभी प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध यथायोग्य उत्कृष्ट संक्लेश परिणामों से होता है । जघन्य स्थितिबंध उससे विपरीत (अर्थात् उत्कृष्ट विशुद्ध परिणामों से) होता है । तीन आयु का बंध इससे वर्जित है ॥134॥