
सण्णि असण्णिचउक्के एगे अंतोमुहुत्तमाबाहा ।
जेट्ठे संखेज्जगुणा आवलिसंखं असंखभागहियं ॥146॥
अन्वयार्थ : संज्ञी, असंज्ञी चतुष्क और एकेन्द्रिय में जघन्य आबाधा अंतर्मुहूर्त है । इनमें उत्कृष्ट आबाधा जघन्य आबाधा से संज्ञी आदि उपरोक्त जीवों में क्रम से संख्यात गुणा, आवली के संख्यातवें भाग अधिक तथा आवली के असंख्यातवें भाग अधिक है ॥146॥