सव्वाओ दु ठिदीओ सुहासुहाणंपि होंति असुहाओ ।
माणुसतिरिक्खदेवाउगं च मोत्तूण सेसाणं ॥154॥
अन्वयार्थ :
मनुष्य, तिर्यंच, देवायु के सिवाय बाकी सब शुभ तथा अशुभ प्रकृतियों की स्थितियाँ अशुभरूप ही हैं॥154॥