
कम्मसरूवेणागयदव्वं ण य एदि उदयरूवेण ।
रूवेणुदीरणस्स व आबाहा जाव ताव हवे ॥155॥
उदयं पडि सत्तण्हं आबाहा कोडकोडि उवहीणं ।
वाससयं तप्पडिभागेण य सेसट्ठिदीणं च ॥156॥
अन्वयार्थ : कार्मणशरीर नामक नामकर्म के उदय से योग द्वारा आत्मा में कर्मस्वरूप से परिणमता हुआ जो पुद्गलद्रव्य जब-तक उदयस्वरूप अथवा उदीरणा स्वरूप न हो तब-तक के उस काल को आबाधा कहते हैं ।
आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मों की उदय की अपेक्षा आबाधा एक कोड़ाकोड़ी सागर स्थिति की सौ वर्ष जानना और बाकी स्थितियों की आबाधा इसी प्रतिभाग से जानना ।