सत्थाणं धुवियाणमणुक्कस्समसत्थगाण धुवियाणं ।
अजहण्णं च य चदुधा सेसा सेसाणयं च दुधा ॥179॥
अन्वयार्थ : ध्रुव बंधी 8 प्रशस्त प्रकृतियों के अनुकृष्ट अनुभागबंध के, ध्रुव बंधी 39 अप्रशस्त प्रकृतियों के अजघन्य अनुभागबंध के सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव चार प्रकार का हैं । ध्रुव बंधी प्रकृतियों के जघन्यादि तीन भेद तथा 73 अध्रुव प्रकृतियों के जघन्यादि चारों भेद - इन सबके सादि और अध्रुव ये दो ही प्रकार हैं ।