
सगसगखेत्तगयस्स य अणंतिमं जोग्गदव्वगयसादी ।
सेसं अजोग्गसंगयसादी होदित्ति णिद्दिट्ठं ॥189॥
अन्वयार्थ : अपने-अपने एक तथा अनेक-क्षेत्र में रहनेवाले पुद्गल द्रव्य के अनंतवें भाग योग्य सादि द्रव्य है और शेष अयोग्य सादि द्रव्य है - ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥189॥