
देसावरणण्णोण्णब्भत्थं तु अणंतसंखमेत्तं खु ।
सव्वावरणधणट्ठं पडिभागो होदि घादीणं ॥198॥
अन्वयार्थ : चार ज्ञानावरणादि देशघाति प्रकृतियों की अन्योन्याभ्यस्तराशि अनंत संख्या-प्रमाण है । वही राशि सर्वघाती प्रकृतियों के द्रव्य-प्रमाण को निकालने के लिये घातिया कर्मों का प्रतिभाग जानना॥198॥