
सव्वावरणं दव्वं विभंजणिज्जं तु उभयपयडीसु ।
देसावरणं दव्वं देसावरणेसु णेविदरे ॥199॥
बहुभागे समभागो बंधाणं होदि एक्कभागम्हि ।
उत्तकमो तत्थवि बहुभागो बहुगस्स देओ दु ॥200॥
अन्वयार्थ : सर्वघाती द्रव्य का सर्वघाती और देशघाति दोनों प्रकृतियों में विभाग करके देना । देशघाति द्रव्य का विभाग देशघाति में ही देना, सर्वघाति प्रकृतियों में नहीं देना ॥199॥
जिनका एक समय में बंध हो उन प्रकृतियों में अपने-अपने पिंड-द्रव्य के बहुभाग को तो बराबर बाँटकर अपनी-अपनी उत्तर प्रकृतियों में समान द्रव्य देना और शेष एक भाग में भी पूर्व कहे क्रम से ही भाग कर-करके बहुभाग बहुत द्रव्य वाले को देना ॥200॥