+ वेदनीय, आयु, गोत्र उत्तर प्रकृतियों में विभाग -
घादितियाणं सगसग-सव्‍वावरणीयसव्‍वदव्‍वं तु ।
उत्तकमेण य देयं, विवरीयं णामविग्घाणं ॥201॥
अन्वयार्थ : ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय -- इन 3 घातिया कर्मों का क्रम से प्रथम प्रकृति से अंत की प्रकृति पर्यंत अपना-अपना सर्वघाती द्रव्य घटता-घटता देना । और नाम तथा अंतराय की प्रकृतियों का द्रव्य विपरीत अर्थात् प्रथम प्रकृति से अंत की प्रकृति पर्यंत बढ़ता-बढ़ता अथवा अंत से लेकर आदि प्रकृति पर्यन्त घटता-घटता देना ॥२०१॥