
मोहे मिच्छत्तादीसत्तरसण्हं तु दिज्जदे हीणं ।
संजलणाणं भागेव होदि पणणोकसायाणं ॥202॥
संजलणभागबहुभागद्धं अकसायसंगयं दव्वं ।
इगिभागसहियबहुभागद्धं संजलणपडिबद्धं ॥203॥
अन्वयार्थ : मोहनीय कर्म में मिथ्यात्वादि सत्रह प्रकृतियों को क्रम से हीन-हीन द्रव्य देना और पाँच नोकषाय का भाग संज्वलन कषाय के भाग के समान जानना ॥202॥
मोहनीय कर्म के देशघाति बहुभाग का आधा नोकषाय देशघाति द्रव्य जानना । और शेष एक भाग सहित आधा बहुभाग संज्वलन कषाय का देशघाति संबंधी द्रव्य होता है ॥203॥