
तण्णोकसायभागो सबंधपणणोकसायपयडीसु ।
हीणकमो होदि तहा देसे देसावरणदव्वं ॥204॥
पुंबंधऽद्धा अंतोमुहुत्त इत्थिम्हि हस्सजुगले य ।
अरदिदुगे संखगुणा णपुंसकऽद्धा विसेसहिया ॥205॥
अन्वयार्थ : वह नोकषाय के हिस्सा में आया हुआ द्रव्य एकसाथ बंधने वाली पाँच नोकषाय प्रकृतियों में क्रम से हीन-हीन देना । और इसी प्रकार देशघाती संज्वलन कषाय का देशघाती संबंधी जो द्रव्य है वह युगपत् जितनी प्रकृति बँधे उनको पहले कहे हीन क्रम से देना ॥204॥
पुरुषवेद के निरंतर बंध होने का काल अंतर्मुहूर्त है । स्त्रीवेद का उससे संख्यात गुणा, हास्य और रति का काल उससे भी संख्यात गुणा,अरति और शोक का उससे भी संख्यात गुणा; किंतु अंतर्मुहूर्त ही है और नपुंसकवेद का काल उससे भी कुछ अधिक जानना ॥205॥