+ नामकर्म की रचना -
पणविग्घे विवरीयं सबंधपिंडिदरणामठाणेवि ।
पिंडं दव्वं च पुणो सबंधसगपिंडपयडीसु ॥206॥
अन्वयार्थ : पाँच अंतराय में विपरीत (अंत से लेकर आदि तक) क्रम जानना । नामकर्म के स्थानों में जो एक ही काल में बंध को प्राप्त होने वाली गत्यादि पिंडरूप और अगुरुलघु आदि अपिंडरूप प्रकृतियाँ हैं उनमें भी विपरीत ही क्रम जानना ॥206॥