
अविभागपडिच्छेदो वग्गो पुण वग्गणा य फड्ढयगं ।
गुणहाणीवि य जाणे ठाणं पडि होदि णियमेण ॥223॥
पल्लासंखेज्जदिमा गुणहाणिसला हवंति इगिठाणे ।
गुणहाणिफड्ढयाओ असंखभागं तु सेढीये ॥224॥
फड्ढयगे एक्केक्के वग्गणसंखा हु तत्तियालावा ।
एक्केक्कवग्गणाए असंखपदरा हु वग्गाओ ॥225॥
एक्केक्के पुण वग्गे असंखलोगा हवंति अविभागा ।
अविभागस्स पमाणं जहण्णउड्ढी पदेसाणं ॥226॥
अन्वयार्थ : सर्व योगस्थान जगतश्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । उनमें एक-एक स्थान के प्रति अविभाग-प्रतिच्छेद, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, गुणहानि - इतने भेद, नियम से होते है ऐसा जानना ॥223॥
एक योगस्थान में गुणहानि की शलाका पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । एक गुणहानि में स्पर्धक जगतश्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥224॥
एक-एक स्पर्धक में वर्गणाओं की संख्या उतनी ही अर्थात् जगतश्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । और एक-एक वर्गणा में असंख्यात जगतप्रतर प्रमाण वर्ग हैं ॥225॥
एक-एक वर्ग में असंख्यातलोक प्रमाण अविभाग प्रतिच्छेद होते हैं । और अविभाग प्रतिच्छेद का प्रमाण प्रदेशों में जघन्य वृद्धि-स्वरूप जानना ॥226॥
| एक - एक | योगस्थान में | पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण | नानागुणहानियाँ हैं |
| गुणहानि में | जगतश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण | स्पर्धक हैं |
| स्पर्धक में | जगतश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण | वर्गणायें हैं |
| वर्गणा में | असंख्यात जगतप्रतर प्रमाण | वर्ग है |
| वर्ग में | असंख्यात लोकप्रमाण | अविभाग प्रतिच्छेद है |
| स्वरूप | भेद | प्रमाण |
| जिसका दूसरा भाग न हो सके, ऐसा शक्ति का जो अंश | = अविभाग प्रतिच्छेद | = प्रदेशों की जघन्य वृद्धि रूप |
| अविभाग प्रतिच्छेदों का समूह | = वर्ग | = असंख्यात लोकप्रमाण अविभाग प्रतिच्छेद |
| वर्गों का समूह | = वर्गणा | = असंख्यात जगतप्रतर वर्ग |
| वर्गणाओं का समूह | = स्पर्धक | = वर्गणा |
| स्पर्धकों का समूह | = गुणहानि | = स्पर्धक |
| गुणहानियों का समूह | = स्थान | = पल्य असं. गुणहानि |
| सर्व योगस्थान | = जगतश्रेणी / असं. |