मिच्छोदयेण मिच्छत्तमसद्दहणं तु तच्चअत्थाणं ।
एयंतं विवरीयं विणयं संसयिदमण्णाणं ॥३॥
मिथ्यात्वोदयेन मिथ्यात्वमश्रद्धानं तु तत्त्वार्थानां ।
एकांतं विपरीतं विनयं संशयितमज्ञानम् ॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व के उदय से जो तत्वों का अश्रद्धान है वह मिथ्यात्व कहलाता है उसके ५ भेद हैं- एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान ॥३॥