छिंस्सदिएसुऽविरदी छज्जीवे तह य अविरदी चेव ।
इंदियपाणासंजम दुदसं होदित्ति णिद्दिट्ठं ॥४॥
षट्स्विन्द्रियेष्वविरति: षड्जीवेषु तथा चाविरतिश्चैव ।
इन्द्रियप्राणासंयमा द्वादश भवन्तीति निर्दिष्टं ॥
अन्वयार्थ : पाँच इंद्रिय और मन इन छह इंद्रियों के विषयों से विरक्त नहीं होना और पाँच स्थावर एवं त्रस ऐसे षट्काय जीवों की विराधना से विरक्त नहीं होना अविरति है । इस प्रकार से इंद्रिय असंयम और प्राणी असंयम के भेद से अविरति के १२ भेद होते हैं ॥४॥