मणवयणाण पउत्ती सच्चासच्चुभयअणुभयत्थेसु ।
तण्णामं होदि तदा तेहिं दु जोगा हु तज्जोगा ॥७॥
ओरालं तंमिस्सं वेगुव्वं तस्स मिस्सयं होदि ।
आहारय तंमिस्सं कम्मइयं कायजोगेदे ॥८॥
मनोवचनानां प्रवृत्ति: सत्यासत्योभयानुभयार्थेषु ।
तन्नाम भवति तदा तैस्तु योगाद्धि तद्योगा: ॥
औदारिकं तन्मिश्रं वैक्रियिकं तस्य मिश्रकं ।
आहारकं तन्मिश्रं कार्मणकं काययोगा एते ॥
अन्वयार्थ : सत्य, असत्य, उभय और अनुभय अर्थों में मन, वचन की प्रवृत्ति सत्य मन, सत्य वचन आदि नाम से कही जाती है । इन सत्य मन, असत्य मन की प्रवृत्तियों के निमित्त से जो आत्मा के प्रदेशों में हलन, चलन होता है वह योग कहलाता है अत: इन सत्यमन, वचन के योग से सत्य मनोयोग, असत्य मन, वचन के योग से असत्य मनोयोग आदि उन-उन नाम वाले योग कहलाते हैं । इनके नाम- सत्यमनोयोग, असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्यवचन योग, असत्यवचन योग, उभयवचन योग, अनुभय वचन योग, ये मनोयोग, वचनयोग के आठ भेद हुये ॥७॥
औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रियक काययोग, वैक्रियकमिश्र काययोग, आहारक काययोग, आहारकमिश्र काययोग और कार्मणयोग ये काययोग के ७ मिलकर योग के पंद्रह भेद होते हैं ॥८॥