मिच्छे खलु मिच्छत्तं अविरमणं देससंजदो१ त्ति हवे ।
सुहुमो त्ति कसाया पुणु सजोगिपेरंत जोगा हु२ ॥९॥
मिथ्यात्वे खलु मिथ्यात्वं अविरमणं देशसंयतमिति भवेत् ।
सूक्ष्ममिति कषाया: पुन: सयोगिपर्यन्तं योगा हि॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व गुणस्थान तक मिथ्यात्व रहता है, देशसंयत गुणस्थान तक अविरति रहती है, सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान तक कषायें रहती हैं एवं सयोगकेवली पर्यंत योग रहते हैं ॥९॥
गुणस्थान में आस्रव के मूल-प्रत्यय |
गुणस्थान | बंध-प्रत्यय | मिथ्यात्व | अविरत | कषाय | योग |
मिथ्यादृष्टि | 4 | ✔ | ✔ | ✔ | ✔ |
सासादन | 3 | X | ✔ | ✔ | ✔ |
सम्यग्मिथ्यादृष्टि | 3 | X | ✔ | ✔ | ✔ |
असंयत सम्यग्दृष्टि | 3 | X | ✔ | ✔ | ✔ |
संयतासंयत | 3 | X | ✔ | ✔ | ✔ |
प्रमत्तसंयत | 2 | X | X | ✔ | ✔ |
अप्रमत्तसंयत | 2 | X | X | ✔ | ✔ |
अपूर्वकरण | 2 | X | X | ✔ | ✔ |
अनिवृत्तिकरण | 2 | X | X | ✔ | ✔ |
सूक्ष्मसाम्पराय | 2 | X | X | ✔ | ✔ |
उपशान्त / क्षीण कषाय | 1 | X | X | X | ✔ |
सयोग केवली | 1 | X | X | X | ✔ |
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 786 से 788 |