मिच्छदुगविरदठाणे मिस्सदुकम्मइयकायजोगा य ।
छट्ठे हारदु केवलिणाहे ओरालमिस्सकम्मइया ॥१०॥
मिथ्यात्वद्विकाविरतस्थाने मिश्रद्विककार्मणकाययोगाश्च ।
षष्ठे आहारद्विकं केवलिनाथे औदारिकमिश्रकार्मणा: ॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व, सासादन और असंयत गुणस्थानों में औदारिकमिश्र, वैक्रियकमिश्र और कार्मण काययोग होते हैं । छठे गुणस्थान में आहारक, आहारकमिश्र योग होते हैं एवं केवली भगवान के औदारिक मिश्र और कार्मण योग होते हैं ॥१०॥