पंच चदु सुण्ण सत्त य पण्णर दुग सुण्ण छक्क छक्केक्कं ।
सुण्णं चदु सगसंखा पच्चयविच्छित्ति णायव्वा ॥११॥
पंच चतु: शून्यं सप्त च पंचदश द्वौ शून्यं षट्कं षट्कैकं एकं ।
शून्यं चतु: सप्तसंख्या प्रत्ययविच्छित्ति: ज्ञातव्या ॥
अन्वयार्थ : पहले गुणस्थान में ५, दूसरे में ४, तीसरे में शून्य, चौथे में ७, पाँचवें में १५, छठे में २, सातवें में शून्य, आठवें में छह, नवमें के छह भागों में क्रम से १-१ करके छह, दसवें में १, ग्यारहवें में शून्य, बारहवें में ४, तेरहवें में ७, चौदहवें में शून्य ऐसे आस्रवों की व्युच्छित्ति का क्रम जानना ॥११॥