दो मिस्स कम्म खित्तय तसवह वेगुव्व तस्स मिस्सं च ।
ओरालमिस्स कम्ममपच्चक्खाणं तु ण हि पंचे ॥१३॥
द्वे मिश्रे कर्म क्षिप, त्रसवधो वैक्रियिकं तस्य मिश्रं च ।
औदारिकमिश्रं कर्माप्रत्याख्यानं तु न हि पंचमे ॥
अन्वयार्थ : चतुर्थ गुणस्थान में औदारिकमिश्र, वैक्रियकमिश्र और कार्मणयोग नहीं है । पाँचवें में त्रसवध, वैक्रियक, वैक्रियकमिश्र, औदारिकमिश्र, कार्मण और अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ ये नव आस्रव नहीं हैं ॥१३॥