इत्तो उवरिं सगसगविच्छित्तिअणासवाण संजोगे ।
उवरुविंर गुणठाणे होंतित्ति अणासवा णेया ॥१४॥
इत: उपरि स्वस्वविच्छित्त्यास्रवाणां संयोगे ।
उपर्युपरि गुणस्थाने भवन्तीति अनास्रवा ज्ञेया: ॥
अन्वयार्थ : इसके आगे अपने-अपने गुणस्थानों में व्युच्छिन्न आस्रवों को ऊपर-ऊपर के गुणस्थानों में मिलाते जाइये, वे ही अनास्रव बन जाते हैं ॥१४॥