अलियमणवयणमुभयं णत्थि जिणे अत्थि सच्चमणुभयं ।
मिस्सोरालियकम्मं अपच्चयाऽजोगिणो होंति ॥१८॥
अलीकमनोवचनं उभयं नास्ति४ , जिने अस्ति सत्यमनुभयं ।
मिश्रौदारिककार्मणा, अप्रत्यया अयोगिनो भवन्ति ॥
अन्वयार्थ : असत्य मनोयोग, असत्यवचन योग, उभय मनोयोग, उभय वचनयोग ये ४ योग सयोगकेवली में नहीं हैं, इन चारों की व्युच्छित्ति बारहवें में हो चुकी है एवं सयोगकेवली जिनेन्द्र भगवान के सत्यमनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्यवचन योग, अनुभयवचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण ये ७ आस्रव पाये जाते हैं किन्तु इस सयोगी गुणस्थान के अंत में इनकी व्युच्छित्ति हो जाने से अयोगकेवली आस्रव एवं आस्रव की व्युच्छित्ति से रहित हैं ॥१८॥
गुणस्थानों में आस्रव के उत्तर प्रत्यय
नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा
गुणस्थान प्रत्यय जघन्य उत्कृष्ट
संख्या अनुदय व्युच्छित्ति संख्या प्रत्यय संख्या प्रत्यय
मिथ्यादृष्टि 55 2 (आहारक,आहारक-मिश्र योग) 5 (५ मिथ्यात्व) 10 १ मिथ्यात्व, २ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 18 १ मिथ्यात्व, ७ असंयम, ४ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
सासादन 50 7 4 (अनंतानुबंधी ४) 10 २ असंयम, ७ (४ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति), १ योग 17 ७ असंयम, ९ (४ कषाय, १ वेद, ४ (हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा)), १ योग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि 43 14 (औदारिक-मिश्र,वैक्रियिक-मिश्र,कार्मण) 0 9 २ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 16 ७ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
असंयत सम्यग्दृष्टि 46 (+ औदारिक-मिश्र,वेक्रियिक-मिश्र,कार्मण) 11 7 (४ अप्रत्याख्यान, औदारिक-मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिक-मिश्र, कार्मण, १ असंयम)
संयतासंयत 37 20 (औदारिक-मिश्र,कार्मण) 15 (४ प्रत्याख्यान, शेष ११ असंयम) 8 २ असंयम, २ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 14 ६ असंयम, २ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
प्रमत्तसंयत 24 (+ आहारक,आहारक-मिश्र) 33 2 (आहारक,आहारक-मिश्र) 5 १ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 7 १ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
अप्रमत्तसंयत 22 35 0
अपूर्वकरण 22 35 6 (६ नोकषाय)
अनिवृत्तिकरण प्रथम भाग 16 41 1 (नपुंसक-वेद) 2 १ कषाय, १ योग 3 १ कषाय, १ वेद, १ योग
द्वितीय भाग 15 42 1 (स्त्री-वेद)
तृतीय भाग 14 43 1 (पुरुष-वेद)
चतुर्थ भाग 13 44 1 (संज्वलन क्रोध)
पंचम भाग 12 45 1 (संज्वलन मान)
छठा भाग 11 46 1 (संज्वलन माया)
सातवाँ भाग 10 47 0
सूक्ष्मसाम्पराय 10 47 1 (सूक्ष्म-लोभ) 2 १ कषाय, १ योग 2 १ कषाय, १ योग
उपशान्त कषाय 9 48 0 1 १ योग 1 १ योग
क्षीण कषाय 9 48 4 (असत्य मन / वचन, उभय मन / वचन योग)
सयोग केवली 7 (+ औदारिक मिश्र / कार्मण काय योग) 50 7 (औदारिक,औदारिक-मिश्र,सत्य-२ [मन और वचन],अनुभय-२ [मन और वचन],कार्मण)
कुल बंध प्रत्यय = 57 (५ मिथ्यात्व, १२ असंयम, २५ कषाय, १५ योग)