पच्चयसत्तावण्णा गणहरदेवेहिं अक्खिया सम्मं ।
ते चउबंधणिमित्ता बंधादो पंचसंसारे ॥१९॥
प्रत्ययसप्तपंचाशत् गणधरदेवै: कथिता: सम्यक् ।
ते चतुबन्धनिमित्ता: बन्धत: पंचसंसारे ॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार से गणधर देवों ने सम्यक् प्रकार से सत्तावन प्रत्यय-आस्रव बतलाये हैं । ये आस्रव द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव रूप पाँच प्रकार के संसार को प्राप्त कराने में कारणभूत प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेशरूप चार प्रकार
के कर्मबंध के लिये निमित्तभूत हैं ॥१९॥